Pitiful Frogs – बेचारे मेंढक
November 1, 2022 | by storykars

अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए आपको सबसे पहले अपने ऊपर विश्वास करना पड़ेगा ।
जो लोग अपनी जिंदगी के फ़ैसले किसी दूसरे व्यक्ति जैसे politicians, astrologers,conmen इत्यादि पर छोड़ कर किसी चमत्कार की उम्मीद करते हैं कि दूसरे लोग उनके मसीहा बन कर उनके जीवन में बदलावले आएँगे, वे बेचारे ज्यादातर धोखा खाते हैं क्योंकि यह पहचानना बहुत कठिन है कि कौन विश्वास के योग्य है और कौन नहीं ?
Pitiful Frogs – बेचारे मेंढक
(लेखक – जी. श्रीनिवास राव )
Pitiful frogs यानी भोले भाले बेचारे मेढकों की कहानी, जिन्होंने बेहतर जीवन की उम्मीद में एक बगुले को अपना राजा मान लिया और मारे गए ।
किसी नदी में बहुत सारे मेढक (frogs) रहते थे । छोटे-बड़े सारे मेढक मिलकर खूब नाचते-गाते, खेलते-कूदते । लेकिन आखिर कब तक ! दिन तो बहुत लम्बा होता था । काटे न कटता । बुजुर्ग मेढकों (frogs) से खेला-कूदा भी न जाता । वे रात-दिन यों ही हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते।
मेंढकों की सभा
एक बार सारे मेढकों (frogs) ने सभा की । सभा में सभी ने अपने-अपने विचार प्रकट किए।
एक वृद्ध मेढक (frog) ने कहा-“या तो हम कुछ ज्यादा बूढ़े हो गए हैं या दिन लम्बे हो चले हैं । समझ में नहीं आता कि क्या करें ?”
“हमारा तो काफी समय खेलने और नदी में तैरते बीत जाता है । लेकिन फिर भी पूरा दिन खाली रहता है । इसीलिए रात में ठीक से नींद भी नहीं आती।” काफी देर तक बहस होती रही ।
अंत में सभी एक ही नतीजे पर पहुंचे कि उन सबके पास समय इसलिए ज्यादा है कि करने के लिए कुछ काम नहीं है । लेकिन समस्या यह थी कि कौन-सा काम कैसे किया जाए ? तय किया गया कि सभी सोचेंगे कौन-सा काम किया जा सकता है।
चीटियों से प्रेरणा
एक नन्हा मेढक(frog)सभी मेढकों के बीच से उछलता हुआ चला गया। उसने चींटियों का एक हुजूम देखा । चीटियों की लम्बी-लम्बी कतारें इधर से उधर जा रही थीं। कोई अपने वजन से दुगुना वजन ढो रही थी। कोई तिनके उठाकर ला रही थी।
वे एक-दूसरे से मुंह भी भिड़ाती, जैसे आपस में कोई गहरी बातचीत कर रही हों । कुछ अपने घरों की मरम्मत कर रही थीं । उसे एक भी चींटी ऐसी नजर नहीं आई, जो खाली थी। छोटे-से मेढक(frog) को बड़ा आश्चर्य हुआ। इतनी नन्ही चींटियां अपने हिस्से के काम कितनी कुशलता से कर रही थीं।
छोटे मेढक(frog) ने कई चींटियों को रोककर उनसे बात करने की कोशिश की । लेकिन उनके पास इतना समय कहां था कि वे रुककर उसकी बात सुनतीं । वे तो लगातार काम में जुटी थीं, जिससे बरसात आने से पहले खाने-पीने का सामान जुटा सकें । अंत में एक बड़ी चींटी को उस नन्हे मेढक(frog) पर दया आ गई । उसने मेढक(frog)की पूरी बात सुनी ।
फिर वह बोली-“हमारी एक रानी है । हम सारा कार्य उन्हीं की देख-रेख में करती हैं।”
हमें चाहिए राजा
छोटे मेढक (frog) को लगा, जैसे उसे पूरा रहस्य पता चल गया है । ‘अगर हमारा भी एक राजा हो, तो हमारी भी सारी समस्याएं हल हो जाएंगी।‘ -मेढक(frog) ने सोचा । जल्दी ही वह अपने दूसरे साथियों के पास जा पहुंचा। उसने जाकर सारी बात बताई।
कहा-“जल्दी ही हमें भी अपने राजा को ढूंढ़ना चाहिए।” दूसरे मेढकों को यह बात काफी पसंद आई, लेकिन राजा कैसे ढूंढ़ा जाए, यह बात किसी को पता न थी। बूढ़ी नानी मेढकी बोली-“क्यों न हम भगवान से प्रार्थना करें कि वह हमें एक अच्छा-सा राजा भेज दें।”
बूढ़ी नानी की बात, क्या बूढ़े क्या छोटे, सब मेढकों (frogs) को खूब पसंद आई ।
सब मेढकों (frogs) ने अपनी आंखें बंद कर ली और भगवान से प्रार्थना करने लगे। वे बहुत दिनों तक प्रार्थना करते रहे। धीरे-धीरे उन्होंने एक-एक करके आंखें खोली । उन्होंने देखा, सामने से लकड़ी का एक बड़ा तख्ता बहता चला आ रहा है ।
“अरे, देखो ! शायद यही है हमारा राजा ।”एक मेढक(frog) ने कहा ।
“हां, भगवान ने शायद इसे हमारे ही लिए भेजा है।” -दूसरा बोला ।
एक-एक करके वे सारे मेढक(frogs) अपने राजा से बातचीत करने को उत्सुक हो उठे । कल्पना करने लगे कि अपने राजा की देख-रेख में वे भी चींटियों की तरह मेहनत करने लगे हैं।
वे सब तख्ते के पास गए। उसे छुआ। उससे बातें करने लगे। लेकिन आश्चर्य राजा ने उनकी किसी बात का उत्तर नहीं दिया।
जो राजा उनकी बात ही नहीं सुनता, वह भला उनसे काम क्या कराएगा?’-सब सोचने लगे। फिर वे उस तख्ते पर चढ़ उछलकूद मचाने लगे। जल्दी ही उनकी समझ में आ. गया कि वह कोई राजा नहीं था।
सारे मेढक दोबारा से नदी के किनारे इकट्ठे हए। वे फिर से भगवान से प्रार्थना करने लगे।
जब फिर से उन्होंने आंखें खोलीं, तब उन्होंने एक चिड़िया को नदी के पानी में देखा । सफेद रंग की वह चिड़िया एक पैर पर खड़ी थी । ऐसा लगता था, जैसे वह भी ईश्वर की प्रार्थना कर रही थी।
“हो न हो, यही हमारा राजा है।” “देखो न, कैसा चांदी-सा उजला रंग। ईश्वर की भक्ति में इतना लीन कि यह भी नहीं पता कि एक टांग पर खड़े होने से गिर सकते हैं।” का इतने सुंदर राजा को देख, सभी मेढक खुश हो उठे। वे सब जल्दी से जल्दी राजा के पास पहुंचे। वे उसका स्वागत करना चाहते थे।
वे उछलते-कूदते, नाचते-गाते पानी में खड़े, अपने राजा के पास पहुंचे। लेकिन यह क्या ! राजा नेअपनी आंखें खोली । चोंच में पानी डाला और एक – मेढक को गड़प कर गया । इस तरह जल्दी ही उसने बहुत सारे मेढकों का काम तमाम कर दिया।
बचे हुए सारे मेढ़क जान बचाकर भागे। यह राजा कैसा था, जो अपनी प्रजा को खा रहा था। ‘शायद ईश्वर ने हमारी बुरी आदतों से नाराज होकर ऐसा क्रूर राजा भेजा है।’
दरअसल , वे यह नहीं समझ सके कि जिसे वह राजा समझ रहे थे, वह एक बगुला था और बहुत देर से पानी में खड़ा मेढकों का ही इंतजार कर रहा था। जब तक यह बात समझ में आयी तब तक बहुत से मेंढक अपनी जान गवां चुके थे।
Moral of the story
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कोई दूसरा आपके जीवन के निर्णय ले, यह उम्मीद रखना मूर्खता है।
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अन्धविश्वास के परिणाम घातक हो सकते हैं।
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अनजान व्यक्ति पर आँखे मूँद कर विश्वास करने के परिणाम घातक हो सकते हैं।
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विवेक अर्थात सही-गलत की समझ ईश्वरीय वरदान है अतः भगवान की भक्ति भी बिना विवेक के करना उचित नहीं है।
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मित्र के भेष में आये शत्रु को पहचानना ही शत्रुबोध है।
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जो दोस्त-दुश्मन में भेद नहीं कर पाता वह धोखा खाता है।
FAQ
Pitiful frogs- बेचारे मेंढक कहानी वास्तविक जीवन की किस सच्चाई को उजागर करती है ?
यह Story दिखाती है कि किस तरह लोग अपने ही जीवन के Decision लेने में दूसरों के ऊपर निर्भर रह कर अपना कितना नुकसान कर लेते हैं!
हमें अपने Decision अपने आप क्यों लेने चाहिए ?
क्योंकि आपकी परिस्थिति, आपकी ताकत और आपकी कमजोरियों को आपसे बेहतर कोई नहीं समझ सकता है । आप पर जो बीत रही है उसका First hand Experience आप के ही पास है । इसीलिए आपके जीवन के निर्णय लेने में सबसे बड़ी भूमिका आपकी ही होनी चाहिए।
इसके अतिरिक्त यह भी समझिए कि समाज में अच्छे-बुरे दोनों तरह के लोग होते हैं। बुरे लोग तरह तरह का पाखण्ड रच कर और भ्रम फैला कर ऐसे ही लोगों की तलाश में रहते है जो उन पर आँखे मूँद कर भरोसा करें ताकि ये बुरे लोग उन भोले लोगों का फायदा उठा सकें ।
हम में से बहुत सारे लोग अपने जीवन में निर्णय केवल इसीलिए नहीं ले पाते क्योंकि वे समझ ही नहीं पाते कि क्या निर्णय लें?
अपने Interests, Skills और Needs को ध्यान में रखते हुए पहले स्वयं विचार करें फिर उन विचारों को कहीं लिखें और फिर अपने शुभचिंतकों के साथ Brainstorming करें ।
आप जिस निर्णय पर पहुंचना चाहते हैं उसके बारे में अनुभवी लोगों से सलाह करें और अनेक किस्म की सलाहों में से जो आपको अपने लक्ष्य के अनुकूल लगे उसे चुन लें ।
इस कहानी में मेंढकों की क्या गलती थी ?
दो गलतियाँ थीं । पहली – कि वे अपने शत्रु को नहीं पहचानते थे और दूसरी – कि वे बहुत ही ज्यादा भोले और सरल थे । बहुत अधिक सरलता हमको संसार के लिए अनुपयुक्त Misfit बना देती है ।
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