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सेठ जी- truthful lesson of the life

December 8, 2022 | by storykars

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सेठ जी, जो धर्मनगरी के नामी व्यापारी थे उनको लेकर भाग्य और समय के बीच बहस हो गयी कि मनुष्य के जीवन में हम दोनों में से कौन प्रबल है ?

सेठ जी की उन्नति में किसका अधिक योगदान है ?

जब इस विवाद को कोई अंत समझ नहीं आया तो दोनों ने तय किया कि विवाद का समाधान श्रीहरी विष्णु और माता लक्ष्मी ही करें। इस प्रकार ये दोनों जब बैकुंठ पहुँचे और अपनी समस्या भगवान श्री हरि और माता लक्ष्मी के समक्ष प्रस्तुत की।

वे मुस्कुराए और उन्होंने सेठ जी के परिवार को ही इस विवाद का हल निकालने का माध्यम बनाया। आगे की कहानी इस प्रकार है –

यह सच था कि धर्मनगरी के सेठ जी का बहुत फैला हुआ था और उनके पास काफी दौलत थी लेकिन सेठ जी ने भी उस धन से निर्धनों की सहायता की, अनाथ आश्रम एवं धर्मशाला आदि बनवाये।

इस दानशीलता के कारण सेठ जी की नगर में काफी ख्याति थी।

सेठ जी ने अपनी बेटी की शादी एक बड़े घर में की थी परन्तु बेटी के भाग्य में सुख न होने के कारण उसका पति जुआरी, शराबी, सट्टेबाज निकल गया जिससे सब धन समाप्त हो गया।

बेटी की यह हालत देखकर सेठानी जी रोज सेठ जी से कहती कि आप दुनिया की मदद करते हो मगर अपनी बेटी परेशानी में होते हुए उसकी मदद क्यों नहीं करते हो।

सेठ जी कहते कि भाग्यवान जब तक बेटी-दामाद का भाग्य उदय नहीं होगा तब तक मैं उनकी कितनी भी मदद भी करूं तो भी कोई फायदा नहीं।

और भाग्य उदय तब होगा जब सही समय आ जाएगा !

जब उनका भाग्य उदय होगा तो अपने आप सब मदद करने को तैयार हो जायेंगे। परन्तु मां तो मां होती है, बेटी परेशानी में हो तो मां को कैसे चैन आयेगा?

इसी सोच-विचार में सेठानी रहती थी कि किस तरह बेटी की आर्थिक मदद करूं।

एक दिन सेठ जी घर से बाहर गये थे कि तभी उनका दामाद घर आ गया।

सास ने दामाद का आदर-सत्कार किया और बेटी की मदद करने का विचार उसके मन में आया कि क्यों न मोतीचूर के लड्डूओं में अशर्फियाँ रख दी जाये जिससे बेटी की मदद भी हो जायेगी और दामाद को पता भी नही चलेगा।

यह सोचकर सास ने लड्डूओ के बीच में अशर्फियाँ दबा कर रख दी और दामाद को टीका लगा कर विदा करते समय पांच किलों शुद्ध देशी घी के लड्डू जिनमे अशर्फियाँ थी वह दामाद को दिये।

दामाद लड्डू लेकर घर से चला। दामाद ने सोचा कि इतना वजन कौन लेकर जाये क्यों न यहीं मिठाई की दुकान पर बेच दिये जायें। और दामाद ने वह लड्डुयों का पैकेट मिठाई वाले को बेच दिया और पैसे जेब में डालकर चला गया।

उधर सेठ जी बाहर से आये तो उन्होंने सोचा घर के लिये मिठाई की दुकान से मोतीचूर के लड्डू लेता चलूँ !

और उन्होंने दुकानदार से पाँच किलो लड्डू मांगे ।

मिठाई वाले ने वही लड्डू का पैकेट सेठ जी को वापिस बेच दिया जो उनके दामाद को उसकी सास ने दिए थे।

श्रीमान जी लड्डू लेकर घर आये सेठानी ने जब लड्डूओ का वही पैकेट देखा तो सेठानी ने लड्डू फोडकर देखे अशर्फियाँ देख कर अपना माथा पीट लिया।

सेठानी ने सेठ  को दामाद के आने से लेकर जाने तक और लड्डुओं में अशर्फियाँ छिपाने की बात सेठ जी से कह डाली। सेठ जी बोले कि भाग्यवान मैंनें पहले ही समझाया था कि अभी उनका भाग्य नहीं जागा । देखा मोहरें ना तो दामाद के भाग्य में थी और न ही मिठाई वाले के भाग्य में।

इस प्रकार से भगवान ने कहा कि सत्य तो यह है कि तुम दोनों ही एक दूसरे के पूरक हो । उनका समय अच्छा चल रहा है इसीलिए उनका भाग्य उनके साथ है ।

यह भी जान लो कि भाग्य से ज्यादा और समय से पहले न किसी को कुछ मिला है और न मिलेगा।

समय आने पर ही मनुष्य पुरुषार्थ करता है और उसका भाग्य उदित होता है और उसे प्राप्त वही और उतना ही होता है जितना उसके भाग्य में लिखा होता है ।

लेकिन पुरुषार्थ मनुष्य इसीलिए करना चाहिए। क्योंकि बिना फल की चिंता किये हुए जो मनुष्य स्वधर्म अर्थात अपने शुभ कर्म में निरत रहता है उसके पुण्य संचित होकर उसके सौभाग्य को बढ़ाने वाले हो जाते हैं।

 

भगवान के इस उपदेश से भाग्य और समय के बीच का विवाद समाप्त हो गया और वे संतुष्ट हो गए।

 

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