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राजा भद्रसेन की नीति कुशलता

November 15, 2022 | by storykars

भद्रसेन की नीति कुशलता

राजा भद्रसेन ने अपने शौर्य से एक परी से विवाह किया लेकिन उनके बेटे राजकुमार  रूपसेन, जो उन्ही के समान पराक्रमी और गुणवान थे , उनके  विवाह में क्या अड़चन थी और आखिर विवाह कैसे हुआ ?

 

एक समय की बात है। वाह्लिक राज्य का राजा वीरों में वीर और एक महान योद्धा था। उसका नाम था भद्रसेन।

भद्रसेन अपनी प्रजा का ध्यान रखने वाला और धर्मपरायण भी था । एक बार जब रात में वह सो रहा था तब उसे सपना आया कि कुछ अतीव सुन्दर स्त्रियाँ, जिन्होंने सफ़ेद कपडे पहने हुए थे, और जिनके पंख भी थे, बेड़ियों में जकड़ी हुयी थीं और रो रहीं थीं। उसने सपने में देखा कि वे भद्रसेन से सहायता की विनती कर रहीं थीं ।

भद्रसेन चौंक कर उठ बैठा।

 

अगले दिन भद्रसेन ने राज-ज्योतिषी वेदभानु से अपने स्वप्न का अर्थ पूछा, तो वेदभानु ने कहा कि ‘अवश्य ही ये स्त्रियाँ कहीं न कहीं कष्ट में हैं और आपकी सहायता की उन्हें आवश्यकता है। वे कौन हैं और कहाँ हैं, यह तो मैं अभी आपको नहीं बता सकता किन्तु हे राजन ! वर्ष भर के भीतर आपको उनके बारे में कुछ न कुछ जानकारी अवश्य ही मिलेगी।’

वेदभानु की योग्यता में भद्रसेन को संदेह न था।फलित ज्योतिष में उसकी गणनाएं आश्चर्यजनक रूप से सही साबित होती रहीं थीं ।

राजकाज चलता रहा और बात आयी-गयी हो गयी। कुछ समय बाद गुप्तचरों के नायक ने भद्रसेन को सूचना दी कि वाह्लिक राज्य के दक्षिण में स्थित राज्य का दुष्ट राजा हूणासुर वाह्लिक पर हमला करने की तैयारी लम्बे समय से कर रहा है।

यह सूचना मिलते ही भद्रसेन सावधान हो गए । हूणासुर अपनी बर्बरता, क्रूरता और अत्याचारों के लिए कुख्यात था । ऐसा सुना जाता था कि किसी तांत्रिक क्रिया से उसने कोई यक्षिणी सिद्ध कर ली थी, जिसके जादू से वह सैन्य अभियानों में अपने विरोधी राजा और उसकी सेना को सम्मोहित कर के हरा देता था ।

भद्रसेन ने समय गवाए बिना एक रात अपनी छापामार टुकड़ी के साथ हूणासुर के महल पर एक छोटा सा हमला करके उसका वध कर दिया । और क्योंकि हूणासुर के अत्याचारों से उसके साथ के लोग और प्रजाजन स्वयं भी आतंकित रहते थे इसीलिए वे सहर्ष ही वाह्लिक राज्य का हिस्सा बन गए।

भद्रसेन को हूणासुर के मंत्री ने बताया कि कारागार के गुप्त तहखाने में हूणासुर ने कुछ विशेष तांत्रिक क्रियाओं से कुछ यक्षिणियों को कैद कर रखा था जिन्हें वे लोग परियां कहा करते थे । इन्हीं परियों के पंखों को जलाकर उनकी गंध से वह अपने शत्रु राजाओं और सेनाओं को सम्मोहित करके, उन्हें धोखे से मार डाला करता था।

भद्रसेन ने बिना देरी किये सबसे पहले कारागार से उन परियों को मुक्त करवाया ।

इन्हीं में से एक परी जिसका नाम रतिप्रिया था, उसे सपने में दिखाई दी थी । रतिप्रिया ने भद्रसेन को बताया कि –“मैंने संकल्प लिया था कि जो वीर पुरुष हम लोगों को दुष्ट हूणासुर के बंधन से मुक्त करवाएगा, मैं उसे अपने पति के रूप में स्वीकार करूंगी।

भद्रसेन को रतिप्रिया ने बताया कि कैसे हूणासुर ने धोखे से एक तांत्रिक की मदद से उन लोगों को बंदी बनाया। रतिप्रिया ने यह भी बताया कि अब वह और उसकी सखियाँ वापस अपने लोक नहीं जा सकती क्योंकि यक्ष लोक के नियम के अनुसार कोई परी एक दिन से अधिक पृथ्वीलोक पर नहीं ठहर सकती।

इससे अधिक समय तक पृथ्वी व रहने वाली यक्षिणियों को शेष जीवन फिर पृथ्वीलोक पर ही बिताना होता है। यदि कोई परी इस नियम को भंग करती है तो वह भस्म हो जाती है ।

यह सब जानकर भद्रसेन ने रतिप्रिया से विवाह कर लिया और अन्य परियों का विवाह पडोसी मित्र राज्यों में करवा कर मित्र राज्यों का एक मजबूत संघ बनाया।

भद्रसेन को रतिप्रिया से एक पुत्र प्राप्त हुआ जिसका नाम रखा गया रूपसेन। रूपसेन भी अपने पिता भद्रसेन की ही तरह शूरवीर और सुंदर था।

उनका राज्य शत्रुओं से पूरी तरह से सुरक्षित और मित्र राज्यों से घिरा हुआ था ।  भद्रसेन की वैवाहिक मैत्री की युक्ति बहुत कारगर सिद्ध हुयी थी । जब राजकुमार रूपसेन विवाह के योग्य हुआ तो राजा भद्रसेन और रानी रतिप्रिया ने उसके लिए उपयुक्त कन्या की खोज करनी शुरू कर दी।

रूपसेन भी विवाह  करना चाहता था । लेकिन क्योंकि  उसकी माता और मौसियाँ जो कि वास्तव में परियाँ थीं , उन सबने उसे बहुत ही प्यार से पाला था । इसलिए उसकी यह प्रतिज्ञा और आग्रह था कि उसकी होने वाली पत्नी भी उन्हीं के समान सुंदर कोमल हो।

 

लेकिन उसके राज्य में ऐसी कोई भी लड़की नहीं थी जो सही मायने में उसके लिए राजकुमारी बन सके । जो कोई भी लड़की मिलती उसमें कोई न कोई खामी होती थी। किसी की नाक ऊंची थी तो किसी का कद छोटा था किसी की चाल में खोट था। तो किसी की आवाज में खोट था। इतनी तलाश के बावजूद भी ऐसी कोई भी ऐसी लड़की नहीं मिली जिसे वह अपनी पत्नी बना सके।

एक दिन जब वह अपने महल में था और खिड़की के पास खड़े होकर उद्यान देख रहा था तभी जोर की बारिश होने लगी । आसमान में काले बादल छा गए। और कड़कती बिजली की आवाज ने महल की दीवारों को हिला कर रख दिया ।

महल के पास सभी लोग इकट्ठा होकर आग जलाकर कुदरत के कहर को देखने लगे। तभी महल की मुख्य द्वार पर किसी की खटखटाने की आवाज आई ।

बाहर एक बहुत ही सुंदर राजकन्या  खड़ी हुई थी। उसकेलंबे काले  आबनूस  जैसे  घने बाल बारिश में भीग रहे थे । और उसके रेशम के जूतों से पानी टपक रहा था । उसे राजा भद्रसेन के पास लाया गया तो उसने अपना नाम शूरसेना बताया और यह भी बताया कि वह एक राजकन्या है ।

उसने कहा कि वह और उसके पिता जब वाह्लिक राज्य की सीमाओं से गुजर रहे थ, तभी दस्युओं के दल ने हमला कर के उनके अंगरक्षकों को मार डाला और उसके पिता को बंदी बना लिया।

उसने दस्युओं का मुकाबला किया लेकिन उनकी संख्या अधिक होने के कारण उसे वहां से बचकर लौटना पड़ा और अब वह वाह्लिक राज्य की सहायता से अपने पिता को दस्युओं के चंगुल से छुड़ाना चाहती है।

महाराज भद्रसेन ने सोचा कि कि ऐसी सुन्दर और वीर कन्या को ही राजकुमार रूपसेन की जीवनसंगिनी होना चाहिए । भद्रसेन उसे भीतर ले आए और सभी से परिचय करवाया।

लेकिन महारानी ने महाराज से धीरे से कहा –इसकी ऐसी दशा पर भरोसा करना मुश्किल है । मैंने कभी इतनी अस्त-व्यस्त राजकुमारी नहीं देखी। राजा भद्रसेन ने रानी रतिप्रिया से कहा कि आप अपने तरीके से जाँच सकती हैं कि यह कोई राजकन्या है या कोई गुप्तचर ।

अगर यह आपकी परीक्षा में सफल हुई तो हम न सिर्फ इसके पिता को दस्युओं के बंधन से मुक्त करवाने में इसकी सहायता करेंगे बल्कि राजकुमार रूपसेन से इसका विवाह भी करवा देंगे।

चतुर रानी को दाल में कुछ काला नजर आया था क्योंकि उन्हें महल की सुरक्षा जो करनी थी । महारानी ने असलियत जानने के लिए एक युक्ति की । उन्होंने मंत्रसिद्ध एक सूखा मटर का दाना लिया। और मेहमान कक्ष के भीतर उनके बिस्तर के बीचो बीच रख दिया । और फिर उस मंत्रसिद्ध मटर के ऊपर अच्छे से अच्छे मुलायम गद्दे रख दिए।

इतने आकर्षक मुलायम गद्दे किसी ने नहीं देखे होंगे । पहला गद्दा गहरा मुलायम रंग का। दूसरा बैंगनी रंग का। जो अच्छे धागों से बना हुआ था। तीसरा सफेद रंग का पट्टे वाले गद्दे। । जरी वाले गद्दे बहुत ही अच्छे और मुलायम गद्दे। और सोने की धागों वाले गद्दे जिनके ऊपर अच्छे-अच्छे चित्र बने हुए थे ।

मंत्रसिद्ध मटर के दाने के ऊपर यह सारे मुलायम गद्दे रखने के बाद शूरसेना को उस पर सुलाया गया । मंत्रसिद्ध मटर के दाने के ऊपर इतने सारे गद्दे रखने की फिजूल की मेहनत के बाद महारानी बोली अब मालूम पड़ जाएगा कि वह राजकन्या है या नहीं ।

अगर यह राजकन्या हुई तो इन मंत्रसिद्ध मटर के दानों के प्रभाव से यह अस्वस्थ हो जाएगी वहीं अगर यह कोई गुप्तचर हुई तो इसे कोई सोने में कोई कष्ट न होगा, बहुत मीठी नींद आएगी ।

इतने सारे गद्दों के ऊपर सोने के बाद शूरसेना जब सुबह जब नाश्ता करने आई। तो खुद को अस्वस्थ महसूस कर रही थी । महारानी ने शूरसेना से पूछा क्या अच्छी नींद आई। शूरसेना ने जवाब दिया- “नहीं मैं नहीं सो पाई मुझे बिस्तर पर कुछ चुभ रहा था ,जो पत्थर से भी ज्यादा सख्त था ।

मुझे लगता है कि वह टोपियों में लगाने वाला कोई लोहे का गोला ही था । जो मेरे पूरे शरीर पर घाव के निशान पड़ गए हैं। सभी घर के सदस्य हंसने लगे थे।

क्योंकि शूरसेना असली राजकन्या थी । और यह सबको पता चल चुका था। क्योंकि इतनी मुलायम और कोमल त्वचा किसी राजकुमारी की ही हो सकती थी ।

शूरसेना की बातों पर रानी रतिप्रिया ने सत्य की मोहर लगा दी। उसी दिन राजा भद्रसेन ने स्वयं राजकुमार रूपसेन के नेतृत्व में सैनिकों की एक टुकड़ी वाह्लिक राज्य की सीमाओं पर भेजी और आदेश दिया कि सीमा पर जमा हुए सभी दस्युदलों का सफाया किया जाए और राजकन्या के पिता को ससम्मान और सुरक्षित दस्युओं के चंगुल से छुड़ा कर लाया जाए ।

राजकुमार रूपसेन के पराक्रम के आगे सीमावर्ती सभी दस्यु दलों ने घुटने टेक दिए और प्राणों की भीख मांगते हुए शूरसेना के पिता को छोड़ दिया ।

महाराज भद्रसेन ने शूरसेना के पिता से राजकुमार के लिए शूरसेना का हाथ माँगा और शूरसेना के पिता ने सहर्ष प्रस्ताव  स्वीकार कर लिया । राजकुमार रूपसेन और शूरसेना का विवाह बड़ी धूमधाम से हुआ और आगे चलकर रूपसेन भी एक बहुत ही प्रजावत्सल और प्रतापी राजा सिद्ध हुआ ।

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