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Turtle, Heron & Revenge – कछुआ, बगुला और बदला।

November 2, 2022 | by storykars

Turtle,Heron &Revenge

गुस्से में और दुःख में कभी कभी हम दूसरों के सामने अपने मन की ऐसी बातें बता देते हैं,जिनका बताया जाना बिल्कुल उचित नहीं होता। अपने रहस्य और योजनाओं को दूसरों के सामने प्रकट करना तो ज्ञानीजन ने वैसे भी अनुचित बताया है। लेकिन जीवन में ऐसे कई अवसर आ जाते हैं जब हमें दूसरों की सलाह और साथ की आवश्यकता होती है। ऐसी स्थिति में सबसे पहले यह विचार करना चाहिए कि कौन मित्र है और कौन मित्र नहीं है ? क्योंकि मांगने पर आपको उचित सलाह भी केवल वही देगा जो आपका हितैषी होगा, मित्र होगा। 

शत्रु आपको आपके हित की सलाह देगा, ऐसा सोचना मूर्खता है। शत्रु आपके माध्यम से अपना स्वार्थ सिद्ध करेगा। 

प्रस्तुत कहानी एक ऐसे बगुले की है जिसने कछुए की सलाह मानी।  उस कछुए की जिसके बंधू बांधवों का शिकार वह बगुला और उसके साथी बगुले आये दिन करते थे। स्वाभाविक रूप से वह कछुआ उन बगुलों से शत्रुता मानता था। एक दिन अत्यंत दुःख के क्षणों में कैसे बगुले ने कछुए की सलाह मानी और उसका क्या परिणाम हुआ जानने के लिए पढ़ें यह कहानी -Turtle, Heron & Revenge – कछुआ, बगुला और बदला।

(BASED ON PANCHATANTRA)

 

बगुलों का घर Home of Herons

एक नदी के किनारे एक विशाल वृक्ष  था। नदी के किनारे स्थित  उस पेड पर ढेर सारे बगुले(Herons)निवास किया करते थे । ठीक उसी पेड के कोटर में (जड़ों के पास बिल बनाकर ) एक काला सर्प छिप कर रहता था।

हर वर्ष बगुले अण्डे देते और जब बगुले भोजन की तलाश में इधर उधर जाते तब सही मौका देखकर , वह सर्प उन अण्डों को तथा उन अण्डों में से निकले नवजात बच्चों को खा जाता था ।

यह क्रम ऐसे ही चलता आ रहा था और वर्षो से काला सर्प बगुलों के बच्चे को खा खा कर खूब हृष्ट पुष्ट हो गया था। बुरी बात यह थी कि लाख सोचने के बाद भी बगुले (Herons)यह पता नहीं लगा पा रहे थे कि हर साल आखिर उनके अण्डे और बच्चे कहाँ गायब हो जाते हैं।

कछुओं का घर Home of Turtles

ऐसी खतरनाक जगह होने के बाद भी बगुले भी वहां से जाने का नाम नहीं लेते थे, क्योंकि वहां नदी में कछुओं (Turtles)की भरमार थी। कछुओं का नरम मांस बगुलों को बहुत अच्छा लगता था।

बगुले  उस नदी में रहने वाले कछुओं का खूब शिकार करते थे और कछुओं के जीवन पर हर समय यह संकट मंडराता रहता कि न जाने कब और किस घडी उनके परिवार का कोई सदस्य या उनका साथी बगुलों का भोजन बन जाए।

कछुए(Turtles) भली भांति अपने शत्रुओं को पहचानते थे लेकिन उनकी समझ में यह नहीं आ पा रहा था कि इतने सारे बगुलों से निपटा कैसे जाए? क्योंकि बगुले शक्तिसामर्थ्य और संख्या में उनसे बहुत अधिक थे।

बगुलों का शत्रु Foe of Herons

एक बार एक घटना घटी। बगुलों के जाने के बाद जब कोटर वाला सर्प जब दबे पांव पेड़ की शाखाओं पर बच्चों को हड़पने आया तो एक बगुले की नजर उस पर पड गई। वह बगुला किसी कारण से आज नदी में शिकार करने नहीं गया था। कुछ ही समय पहले उसके भी छोटे छोटे बच्चे गायब हो गए थे जो बहुत खोज करने के बाद भी नहीं मिले थे।

तब से वह बगुला बच्चों के वियोग में तडप रहा था। आज जब उस सर्प को उसने वृक्ष पर अण्डे खाते हुए देखा तो बगुले को पता लग गया कि उसके पहले बच्चों को भी वह सर्प खाता रहा होगा। वह बगुला शोक और क्रोध की अग्नि में जलने लगा। नाग को देखकर वह नदी किनारे भाग गया था , वहीं खड़ा होकर वह रोने लगा।

चालाक कछुआ Clever Turtle

उसे विलाप करते देख एक कछुए पूछा ‘भाई, क्यों रो रहे हो?’

शोक और क्रोध में जलते जीव की सही और गलत का निर्णय लेने की क्षमता प्रभावित हो जाती है। वही गलती बगुले ने भी कर दी।  उसने नाग और अपने मृत बच्चों के बारे में बताकर कहा ‘मैं उससे बदला लेना चाहता हूं।’

कछुए ने सोचा ‘अच्छा ! तो इस दुष्ट के शोक का कारण यह है। जब ये बगुले हमारे बच्चे खा जाते हैं तब तो ये बिल्कुल नहीं विचार करते कि कछुओं के परिजनों को कितना दुःख होता होगा। आज इसके साथ अत्याचार हुआ तो यह सांप से बदला लेना चाहता है। क्या इसने सोचा है कि कछुए भी इन हत्यारे बगुलों से बदला लेना चाहते होंगे।’

और यह सब सोचते सोचते उस कछुए के दिमाग में एक योजना कौंध गयी ।

बगुला अपने शत्रु को अपना दु:ख बताकर ग़लती कर बैठा था। चतुर कछुआ एक तीर से दो शिकार मारने की योजना सोच चुका था। वह बोला ‘सुनो बगुले भाई ! मैं तुम्हें बदला लेने का बहुत अच्छा उपाय सुझाता हूं।’बगुले ने अधीर होकर पूछा “जल्दी बताओ वह उपाय क्या हैं। मैं तुम्हारा एहसान जीवन भरा नहीं भूलूंगा।’

कछुआ मन ही मन मुस्कुराया और उपाय बताने लगा “यहां से कुछ दूर एक नेवले का बिल है। नेवला सांप का घोर शत्रु हैं। नेवले को मछलियाँ बहुत प्रिय होती हैं। तुम छोटी-छोटी मछलियां पकडकर नेवले के बिल से सांप के कोटर तक बिछा दो, नेवला मछलियां खाता-खाता सांप तक पहुंच जाएगा और उसे समाप्त कर देगा।’

बगुला बोला “तुम जरा मुझे उस नेवले का बिल दिखा दो।’

कछुए ने बगुले को नेवले का बिल दिखा दिया। बगुले ने वैसे ही किया जैसे कछुए ने समझाया था। नेवला सचमुच मछलियां खाता हुआ कोटर तक पहुंचा। नेवले को देखते ही सर्प ने फुंकार छोडी। कुछ ही देर की लडाई में नेवले ने सर्प के टुकडे-टुकडे कर दिए। बगुला खुशी से उछल पडा।

कछुए का बदला Revenge of Turtle

कछुए ने मन ही मन में कहा ‘यह तो शुरुआत हैं मूर्ख बगुले। अब मेरा बदला शुरू होगा और तुम सब बगुलों का सर्वनाश होगा।’
कछुए का सोचना सही निकला। नेवला सर्प को मारने के बाद वहां से नहीं गया।

उसे अपने चारों ओर बगुले नजर आए, उसके लिए महीनों के लिए स्वादिष्ट खाना। नेवला उसी कोटर में बस गया, जिसमें सर्प रहता था और रोज एक बगुले को अपना शिकार बनाने लगा। इस प्रकार एक-एक करके सारे बगुले मारे गए।

इस तरह बदले की आग में जलते हुए बगुले द्वारा अपने से पीड़ित शत्रु की सलाह मानना उसके पूरे कुल के नाश का कारण बना।

Moral of the story –

  • किसी को इतना परेशान न करें कि वह आपका शत्रु बन बैठे।

  • आपने जिसे सताया है उससे सद्भावना की अपेक्षा न करें।

  • शत्रुबोध न होना सर्वनाश का कारण बन जाता है

  • बदला लेने के लिए सही समय की प्रतीक्षा करनी चाहिए।

FAQ

पंचतंत्र क्या है ?

पंचतन्त्र की कथाएँ असल में नीतिकथएं हैं जो हमें व्यावहारिक ज्ञान देती हैंसंसार में सफल होने के लिए एक व्यक्ति को कैसा व्यवहार करना चाहिए, यही कला पंचतन्त्र की कहानियां हमें सिखाती हैं

पंचतन्त्र के कितने भाग हैं ?

पंचतन्त्र को पाँच तन्त्रों (भागों) में बाँटा गया है:

  1. मित्रभेद(मित्रों में मनमुटाव एवं अलगाव)
  2. मित्रलाभया मित्रसम्प्राप्ति (मित्र प्राप्ति एवं उसके लाभ)
  3. काकोलुकीयम्(कौवे एवं उल्लुओं की कथा)
  4. लब्धप्रणाश(हाथ लगी चीज (लब्ध) का हाथ से निकल जाना (हानि))
  5. अपरीक्षित कारक(जिसको परखा नहीं गया हो उसे करने से पहले सावधान रहें ; हड़बड़ी में कदम न उठायें)

 पंचतंत्र के लेखक का क्या नाम है ?

पंचतन्त्र के लेखक पण्डित विष्णु शर्मा हैं

पंचतन्त्र कब लिखी गयी थी ?

पंचतन्त्र का रचना काल यद्यपि विवादित है, फिर भी अलग अलग विद्वानों के मतानुसार इसकी रचना तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व के आस-पास निर्धारित की गई है।

पंचतन्त्र की कहानियाँ हमें क्या सिखाती हैं ?

हिंदी भाषा के मूर्धन्य विद्वान् और प्रख्यात साहित्यकार डा. वासुदेव शरण अग्रवाल के शब्दों में

“पंचतन्त्र एक नीति शास्त्र या नीति ग्रन्थ है- नीति का अर्थ जीवन में बुद्धि पूर्वक व्यवहार करना है। चतुरता और धूर्तता नहीं, नैतिक जीवन वह जीवन है जिसमें मनुष्य की समस्त शक्तियों और सम्भावनाओं का विकास हो अर्थात् एक ऐसे जीवन की प्राप्ति हो जिसमें आत्मरक्षा, धन-समृद्धि, सत्कर्म, मित्रता एवं विद्या की प्राप्ति हो सके और इनका इस प्रकार समन्वय किया गया हो कि जिससे आनंद की प्राप्ति हो सके, इसी प्रकार के जीवन की प्राप्ति के लिए, पंचतन्त्र में चतुर एवं बुद्धिमान पशु-पक्षियों के कार्य व्यापारों से सम्बद्ध कहानियां ग्रथित की गई हैं। पंचतन्त्र की परम्परा के अनुसार भी इसकी रचना एक राजा के उन्मार्गगामी पुत्रों की शिक्षा के लिए की गई है और लेखक इसमें पूर्ण सफल रहा है।”

इस प्रकार पंचतन्त्र की कहानियों में राजनीति, मनोविज्ञान और जीवन जीने की कला सिखायी गई है ।

चालाक कछुए और मूर्ख बगुले की कहानी किस बारे में है ?

यह कहानी पंचतन्त्र में वर्णित अपरीक्षितकारकम के सिद्धांत पर आधारित है जिसमें यह बताया गया है कि अच्छी तरह विचार किए बिना एवं भलीभांति देखे सुने बिना किसी कार्य को करने वाले व्यक्ति को कार्य में सफलता प्राप्त नहीं होती अपितु जीवन में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। अतः आँखें बंद करके किसी पर भरोसा नहीं करना चाहिए। 

 

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