PROUD DEFEATED घमण्ड की पराजय
November 1, 2022 | by storykars

यह बहुत छोटी सी समझने वाली बात है कि जिस किसी ने जीवन की कठिनाइयों में (In the bad phases of life) हमारा साथ दिया हम उसके अहसान को मानें और उसके प्रति Thankful रहें। कई बार हम अपने हठ और कृतघ्नता (thanklessness) के चलते स्वयं अपना ही नुकसान कर बैठते हैं । देखिये , over-smartness कोई गुण नहीं बल्कि एक अवगुण है । इस कहानी में हम देखेंगे कि कैसे एक सेठ ने अपने Proud , over-smartness और thanklessness की वजह से हानि भी उठाई और अपमान भी करवाया ।
How Proud defeated (कैसे हुई घमण्ड की पराजय )
(गिरवर प्रसाद शास्त्री जी की कहानी पर आधारित )
रामनगर में सेठ धनपतराय नामक व्यापारी रहता था । वह स्वाभाव से बहुत घमण्डी (Proud) था । उसके पास अपने पुरखों की अपार सम्पत्ति थी । धनपतराय की शादी के पन्द्रह वर्ष बाद एक लड़का हुआ । नाम रखा गया मदन । मदन होनहार और तेजस्वी था । उसका व्यवहार बहुत अच्छा था । घर परिवार और गली-मोहल्ले के लोग मदन को बहुत चाहते थे।
एक बार मदन बीमार हुआ। उसकी बिगड़ती हालत को देखकर धनपतराय बहुत दुखी था । बहुत इलाज कराने पर भी बेटे की दशा बिगड़ती ही जा रही थी।
एक दिन धनपतराय का परम मित्र प्रेमप्रकाश आया । वह कई दिनों से बाहर गया हुआ था । उसने कहा-“मित्र ! किसी अच्छे वैद्य को दिखाओ, ताकि मदन का इलाज सही ढंग से हो सके।” आंखें पौंछते हुए धनपतराय ने कहा-“अब किसे दिखाऊं ! मैंने नगर के सभी प्रसिद्ध चिकित्सकों , वैद्यों और हकीमों से इसका इलाज करा लिया, परंतु किसी की दवा का असर नहीं हुआ ?”
-“क्या तुमने अमृतलाल जी को दिखाया?” -“नहीं।” -“ठीक है। मैं अभी उनको लेकर आता हूँ
कुछ देर बाद मित्र वैद्य अमृतलाल जी को लेकर आया। वैद्य जी ने मदन की नाड़ी देखी। कुछ पूछताछ करके कहा- “इसके लिए मैं अभी एक खुराक दिए देता हूं। मदन का काल आया हुआ है । हो सकता है, इसे जीवन मिल ही जाए।” इतना कहकर वैद्य जी ने अपनी जेब में से एक पुड़िया निकालकर दे दी और चले गए।
धनपतराय ने वह दवाई मदन को खिला दी । दवा का असर हुआ । बेहोश मदन ने ठीक आधे घंटे बाद आंखें खोलीं-मां मां मां की तीन आवाजें दीं। और फिर कुछ देर के लिए आंखें मूंद लीं। एक घंटे बाद वह पूरी तरह होश में आ गया। यह देखकर सभी ने राहत की सांस ली।
मदन के ठीक होने पर सेठ ने एक दिन अपने नौकर को वैद्य अमृतलाल के घर भेजा। पुछवाया कि वैद्य जी ने उसके बेटे के लिए जो एक पुड़िया दी थी, उसका कितना पैसा होगा?
नौकर वैद्य जी के घर गया । धनपतराय के नौकर को देखकर वैद्य जी ने आने का कारण पूछा। उसने
कहा-“वैद्य जी ! सेठ ने पुछवाया है कि मदन को आपने जो दवाई दी थी, उसका कितना पैसा हुआ? बता दें, ताकि आपका भुगतान हो सके ।”
वैद्य ने सहज भाव से कहा-“जाकर सेठ जी से कह दो, तुम्हारा पुत्र मृत्यु शैया पर था। मेरी खुराक से ठीक हो गया । यह तो परमात्मा का फल और तुम्हारे भाग्य की बात है । हम लोग एक ही नगर में रहते हैं । आपस में भाई-भाई जैसे हैं । कोई विशेष लम्बा इलाज तो चला नहीं । धनपतराय जी की जो इच्छा हो, उतना पैसा भिजवा दें । मुझे स्वीकार है ।”
नौकर ने आकर सेठ को वैद्य की बात बताई । सेठ ने फिर से नौकर को वैद्य के पास भेजा और कहलवाया – ‘ऐसा कभी नहीं हो सकता । आप बता दें, ताकि भुगतान हो जाए । मैं किसी का एहसान अपने ऊपर नहीं रहने देता।’
धनपतराय की घमण्ड (Proud) भरी बात सुनकर वैद्य को गुस्सा आ गया । उन्होंने पूरे दस हजार रुपए लिखकर सेठ के पास भेज दिए।
एक पुड़िया का मूल्य दस हजार रुपए, देखकर धनपतराय आगबबूला हो उठा । मन ही मन बड़बड़ाते हुए वैद्य जी के पास गया । बोला- “वैद्य जी, क्या एक पुड़िया का मूल्य दस हजार रुपए होता हैं ? आपको कितने दिन हो गए हैं, ठगी का ऐसा धंधा करते । यदि हिसाब से पैसा लेना है तो ले लो, अन्यथा कुछ नहीं मिलेगा।” इतना कहकर सेठ अपने घर चला आया ।
वैद्यजी इस व्यवहार से आगबबूला हो उठे। धनपतराय जैसे घमंडी (Proud) और कृतघ्न व्यक्ति के केवल शत्रु ही हो सकते हैं । वैद्य जी ने सेठ के घमंड को तोड़ने का निश्चय किया । वह राजदरबार में पहुंचा और सारा वृत्तांत राजा को सुनाया। राजा ने अपने सेवकों को आज्ञा दी- ‘ धनपतराय को दरबार में उपस्थित किया जाए।’ राजाज्ञा का पालन करते हुए उनके सेवकों ने धनपतराय को राजा के सामने पेश किया।
” धनपतराय, क्या तुम्हारा बच्चा मृत्यु शैया पर था ? वैद्य अमृतलाल के इलाज से ठीक हुआ ?” – राजा ने पूछा।
-“हां, अन्नदाता ! इसमें कोई संदेह की बात ही नहीं।”
-“यदि हां, तो तुमने इलाज के पैसे क्यों नहीं दिए ?”
-“इनके पैसे कैसे चुकाऊं। इन्होंने एक खुराक का दस हजार रुपया मांगा । आप ही बताइए, क्या एक खुराक के दस हजार रुपए दिए जाते हैं ?”
वैद्य ने बीच में बात को काटते हुए कहा-“महाराज, जब पहले इन्होंने नौकर को मेरे पास भेजा, तो मैंने कहा था कि हम एक नगर में रहते हैं । तुम जो चाहो, पैसे भेज दो । मुझे स्वीकार है । तब यह दौलत के नशे में मेरे पास आए और घमण्ड (Proud) से बोले-“वैद्य जी, आप एक खुराक का पैसा लिखकर दें और भुगतान लें । सेठ के कहे मुताबिक मैंने एक खुराक का दस हजार रुपया मांगा । अब यह भुगतान में आनाकानी क्यों कर रहे हैं ? यदि यह पैसे नहीं दे सकते, तो मैं पुनः एक खुराक इनके बेटे को दे देता हूं। वह पहले वाली स्थिति में आ जाएगा । फिर मुझे पैसों की आवश्यकता नहीं।”
राजा ने सेठ की ओर देखते हुए कहा-“बोलो, तुम्हें अपना पुत्र प्यारा है या पैसा ? यदि तुम्हें पुत्र चाहिए, तो वैद्य के पैसे का भुगतान करना होगा। अन्यथा वैद्य के अनुसार उस एक खुराक के बदले एक दूसरी खुराक अपने पुत्र को देनी होगी।”
यह सुनकर धनपतराय ने दस हजार रुपए तुरंत निकालकर देते हुए कहा-“महाराज, मैं आपसे और वैद्य जी से क्षमा चाहता हूं। पहले मैनें अपने घमण्ड भरे व्यवहार से वैद्य जी का मन दुखाया फिर मैंने पैसों के लालच में और भी बुरा व्यवहार किया । मेरे पुत्र की जिसने जान बचाई, उसे मैं पैसों से तौलने लगा। यह मेरी भूल थी ।”
Moral of the story
हमनें इस कहानी को पढ़कर जीवन के 4 बहुत जरुरी सबक सीखे –
- घमण्ड इन्सान की सूझबूझ को कमजोर कर देता है ।
- अगर किसी ने बुरे समय में हमारी मदद की है तो हमारे मन में उसके प्रति कृतज्ञता का भाव होना चाहिए।
- घमंड, चाहे वह पैसों का हो या शक्ति का, एक न एक दिन मनुष्य को नीचा ही दिखाता है ।
- धन भले ही जीवन में सबसे महत्वपूर्ण हो लेकिन फिर भी, हर चीज़ को पैसों से नहीं खरीदा जा सकता।
FAQ
कृतज्ञता (Gratitude) का क्या अर्थ है ?
Be grateful ! कुछ भी ऐसा जिसका योगदान हमें या हमारे जीवन को बेहतर बनाने में रहा हो चाहे वह कोई व्यक्ति हो या कोई वस्तु या कुछ भी,उसके प्रति मन में धन्यवाद की भावना, सम्मान की भावना और उसकी परवाह करना ही कृतज्ञता कहलाती है ।
कृतघ्नता (Ingratitude) का क्या अर्थ है ?
कृतज्ञता का ठीक उल्टा कृतघ्नता है ।हमारे जीवन को बेहतर बनाने में मदद करने वाले लोगो या चीजों के प्रति धन्यवाद का भाव न होना या उनकी परवाह न करना कृतघ्नता है।
अहंकार या घमंड क्या है ?
दूसरों को अपने आप से कमतर या हीन समझना और अपने आपको ही बिल्कुल सही या सर्वश्रेष्ठ मानने की सोच अहंकार कहलाती है ।
घमण्डी दिखने से कैसे बचें ?
- घमण्डी दिखने से बचने के लिए-
- सबके साथ विनम्रतापूर्वक व्यवहार करें।
- कोशिश करें कि हमारे कामों से और हमारी बातों से किसी को बेकार में ठेस न पहुँचे ।
- सबको अपना मानते हुए सबके साथ मिलजुल कर रहे तथा समय पड़ने पर सभी की सहायता के लिए तत्पर रहें ।
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