Storykars.com

स्नेह नाम की एक प्यारी सी लड़की की कहानी जिसके अच्छे स्वाभाव के कारण उसे उसके गाँव के बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक सभी प्रेम करते थे । लेकिन अच्छे स्वाभाव के अलावा उसमें एक गुण और भी था – बहादुरी । प्रस्तुत कहानी में आप पढेंगे कि कैसे उस बहादुर लड़की स्नेह ने अपने गाँव की एक दुष्ट डायन से रक्षा की ?

श्रावणी पूर्णिमा के शुभ अवसर पर देश भर में लगने वाले मेलों में से किसी स्थान के मेले को भी लेखक ने लक्ष्य किया है  ।

स्नेह दीदी

‘स्नेह-निर्झर ‘ एक स्मारक है। प्रकृति की सुंदरता का खजाना। पास ही पहाड़ी के ढलान पर एक छोटा-सा कस्बा है, नाम है स्नेहनगर । इसकी एक कहानी है ।

इस क़स्बे से दूर एक गांव में स्नेह नाम की बालिका रहती थी। सीधी-सच्ची, भोली-भाली लड़की । उसने देखा गांव में बूढ़े लोग दुखी रहते हैं। कोई उनसे बात नहीं करता । वह उनकी दिन भर सेवा करती थी। कोई बुढा या बुढ़िया बीमार होती तो वैद्य जी के यहां से दवा लाती थी । स्नेह की सेवा से सब बूढ़े लोग सुखी रहने लगे।

गांव में, बच्चे शाम को शरारत करते थे। वे आपस में लड़ते-झगड़ते थे। स्नेह शाम को उन्हें कहानी सुनाती । बच्चों को स्नेह दीदी की कहानियों में बहत मजा आता था। वे उसे कहानी दीदी कहने लगे।

डायन का खौफ़

डायन
डायन

एक बार गांव में हड़कम्प मच गया। रात में किसी न किसी का बच्चा घर से गायब हो जाता। गांव में भय और आतंक छा गया। स्नेह की कहानियां भी बंद हो गईं। डर के मारे लोग अपने बच्चों को कमरों में ताला बंद करके रखने लगे।

लेकिन हफ्ते-दो हफ्ते में फिर कोई-न-कोई बच्चा गुम हो जाता था। स्नेह भी इन घटनाओं से परेशान हो गई। पास ही पहाड़ की एक गुफा में डरावनी डायन (Witch)रहती थी। देवी की खूब भक्ति की तो उसे वरदान मिला कि कोई उसे देख नहीं सकेगा। इसलिए वह अदृश्य रहती थी।

उसके घमंड को देखकर देवी ने बाद में शाप भी दे दिया कि वह व्यक्ति उसे देख सकेगा जो सीधा-सच्चा हो । कभी झूठ न बोलता हो ।

एक रात स्नेह चीड़ के पेड़ के निकट झाड़ी में छिपकर बैठ गई । उसने देखा, डरावनी डायन (Witch) आंधी की तरह दौड़ी आई और खून में लथपथ कपड़ों को चीड़ की डाल पर लटकाकर उलटी लौट गई ।

स्नेह भी झाड़ी से निकली और उसी दिशा में दौड़ चली । उसमें न जाने कहां से इतनी शक्ति आ गई थी। आगे-आगे डायन (Witch)दौड़ी जा रही थी और पीछे-पीछे स्नेह ।

वह डायन(Witch) तेजी से गुफा में प्रवेश कर गई । गुफा का द्वार एक भारी चट्टान से बंद हो गया । स्नेह द्वार पर खड़ी रह गई । चट्टान को हिलाने की कोशिश की लेकिन वह टस से मस न हुई । उसे सामने पहाड़ी पर देवी का मंदिर नजर आया । वह मंदिर की तरफ चल दी।

स्नेह का संकल्प

पहाड़ी की ढलान पर स्नेह साहस करके चढ़ने लगी । वह देवी का स्मरण करती जाती और पहाड़ी पर चढ़ने का प्रयास करती जाती । मार्ग में उसे डरावनी आवाजें सुनाई पड़ी। शेर की दहाड़ से भी वह विचलित नहीं हुई ।

आखिर लगन और मेहनत काम आई । वह शिखर पर तो पहुंच गई लेकिन देवी-मंदिर के द्वार बंद मिले । मंदिर के प्रांगण में एक बगीचा था, वह भी सूखा पड़ा था । उसके कोने में तुलसी के पौधे झुलसे हुए खड़े थे। पास ही था पानी का निर्झर, वह भी सूखा।

भूखी-प्यासी स्नेह निर्झर की सफाई करती रही, करती रही । निर्झर का कल-कल नाद सुनाई पड़ा और पानी बहना शुरू हो गया।

देवी – मंदिर के प्रांगण में पानी आ गया । स्नेह ने कड़ी मेहनत करके बगीचे को हरा-भरा बना दिया। लेकिन तुलसी के पौधे सूखे के सूखे ही रहे । एक दिन सुबह-सुबह एक सतरंगी चिड़िया आई और स्नेह के कंधे पर बैठ गई । वह चोंच से कोई संकेत देने लगी ।

चिड़िया के संकेत से स्नेह पहाड़ी के पीछे की ओर चल दी । वहां उसे एक गुफा से देवी की वंदना के स्वर सुनाई पड़े । गुफा का द्वार बंद था । स्नेह ने कहा-“अंदर कौन है ?” अंदर से आवाज आई-“मैं देवी-मंदिर का पुजारी हूं । डायन (Witch) ने मुझे गुफा में बंद कर दिया है । अगर तुलसी के पौधे हरे हो जाएं, तो गुफा का द्वार खुल जाएगा। मैं मुक्त हो जाऊंगा।”

स्नेह ने बताया कि सारा बगीचा हरा-भरा हो गया है लेकिन सिंचाई व सेवा के बाद भी तुलसी के पौधे हरे नहीं हुए । पुजारी ने कहा-“बेटी, सिंचाई से वे पौधे हरे नहीं होंगे । डायन (Witch) ने देवी के मंदिर और निर्झर को अपवित्र कर दिया है। देवी मंदिर के द्वार बंद हो गए हैं । यदि कोई निर्झर के मुख्य द्वार पर भागीरथी नदी का जल लाकर डाल दे, तो निर्झर पवित्र हो जाएगा और तुलसी के पौधे भागीरथी के जल से अपने-आप हरे हो जाएंगे। गुफा का द्वार खुल जाएगा । यदि देवी मां को चढ़ाए फूल और प्रसाद डायन की गुफा के द्वार पर रख दिए जाएं तो वह भी मर जाएगी।”.

स्नेह ने देवी मां का स्मरण किया। प्रांगण में रखा कलश उठाया और भागीरथी से जल लेने चल पड़ी। भागीरथी पहाड़ी के बहुत नीचे बह रही थी । मार्ग में बाधाएं आईं। उसने हिम्मत नहीं हारी । एक जगह उसे काले नागों ने घेर लिया। उनकी जहरीली फुफकार का स्नेह पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा । उसने देवी का कलश उनके सामने रख दिया और ‘नाग देवता की आराधना के गीत गाने लगी। जहरीले नाग कलश की परिक्रमा करके गायब हो गए।

आगे बढ़ी तो लंगूर पीछे पड़ गए । स्नेह ने पत्थरों से उन पर प्रहार किए । बस, लंगूरों का दल भाग गया । भागीरथी के तट पर पहुंची, तो उसे बहुत प्यास लगी थी। तभी एक बंदर उसका कलश लेकर पेड़ पर चढ़ गया। उसने कलश भागीरथी में फेंक दिया । कलश के पीछे ही स्नेह भी भागीरथी में कूद पड़ी। उसने कलश तो पकड़ लिया लेकिन वह भागीरथी की तेज धारा में बह चली।

कुछ देर बाद स्नेह ने एक हाथ से पीपल के पेड़ को पकड़ लिया। उसके दूसरे हाथ में कलश था। पीपल के पास एक साधु बाबा बैठे थे। उन्होंने स्नेह को इस हाल में देखा तो कलश को पकड़कर किनारे पर रखा। फिर स्नेह को संभालकर किनारे के ऊपर खींच लिया। स्नेह ने देवी-मंदिर की घटना साधु बाबा को सुनाई। साधु को उस पर दया आ गई। वह बोले-“तुम तो उस स्थान से बहुत दूर आ गई हो ।

लो मेरी खड़ाऊं पहनो । ये तुम्हें देवी-मंदिर में पहुंचा देंगी।”

स्नेह खड़ाऊं पहनकर तुरंत देवी के प्रांगण में पहुंच गई । उसने भागीरथी का जल निर्झर के जल में मिला दिया। तभी बादलों का गर्जन हुआ। बहुत जोर से बिजली कड़की । तुलसी के पौधों में वह जल आया तो उनमें हरियाली लौट आई । गुफा का द्वार खुन गया । पुजारी बंधन मुक्त हो गए । देवी की वंदना के बाद फूल लेकर पुजारी देवी मंदिर के प्रांगण में निर्झर के पास पहुंचे।

डायन का अंत

स्नेह बेसुध-सी बैठी थी । पुजारी ने कहा- “धन्य हो बेटी, तुमने देवी के प्रांगण को पवित्र कर दिया और मुझे मुक्ति दिलाई । लो प्रसाद के फूल और मेरे साथ चलो।” पुजारी ने कमंडल में निर्झर का जल लिया । दोनों देवी का स्मरण करते हुए डायन (Witch) की गुफा की तरफ चल पड़े। गुफा पर पहुंचते ही पुजारी ने देवी का स्मरण किया । गुफा के द्वार पर जल छिड़क दिया । स्नेह ने देवी मां के प्रसाद के फूल गुफा के द्वार पर रख दिए । एक भयानक विस्फोट हुआ । डायन (Witch) का सर्वनाश हो गया ।

स्नेह की वापसी

उधर गांव में बच्चों की चिंता तो खत्म हुई । स्नेह की चिंता अधिक हो गई थी। गांव वाले कहते- “स्नेह ने अपनी कुर्बानी देकर बच्चों को सुरक्षा प्रदान की है ।” बूढ़े-बुढ़िया तो स्नेह को याद करके रोते रहते । बच्चों का भी बुरा हाल था । शाम ढले ही उन्हें कहानी-दीदी की याद आती । मगर वहां न दीदी थी, न कहानी । । एक दिन स्नेह दीदी और पुजारी गांव में पहुंचे । उन्हें देख गांव वाले खुशी से झूम उठे।

पुजारी बाबा ने डायन का सारा किस्सा गांव वालों को सुनाया, तो स्नेह के प्रति उनका प्यार और बढ़ – गया । उस दिन सावन की पूर्णिमा थी। खूब वर्षा हुई । पुजारी बाबा के अनुरोध पर सारा गांव देवी-मंदिर के पास जा बसा । नाम रखा ‘स्नेह-नगर ।’ शाम को स्नेह उसी निर्झर के पास बच्चों को कहानी सुनाने लगी। उस निर्झर का नाम ‘स्नेह-निर्झर’ पड़ गया ।

बरसों बीत गए । अब भी सावन की पूर्णिमा को – हर वर्ष यहां मेला लगाता है।

(साभार  – डा. जयपाल तरंग)

 

Moral of the story – हमनें कहानी से क्या सीखा ?

अपने से छोटों को प्यार करने वाले और अपने बड़ों का सम्मान करने वाले लोग सबके प्रिय होते हैं।

बड़े काम करने के लिए मन में साहस होना जरूरी है ।

साहस का उम्र से कोई लेना-देना नहीं होता ।

जिनका मन साफ़ होता है, भगवान भी उनकी सहायता करते हैं ।

जिनके भीतर लगन और साहस जैसे गुण होते हैं, वे अपना लक्ष्य प्राप्त कर ही लेते हैं ।

 

FAQ

स्नेह का क्या meaning है ?

स्नेह का English meaning है -Affection

स्नेह नगर जैसी Hindi Stories पढने के क्या फ़ायदे हैं?

Hindi Stories पढने के अनेक फायदे हैं । सबसे पहला फायदा तो यह कि हिंदी कहानी पढने से भाषा सम्बन्धी समझ विकसित होती है । नए नए शब्दों की जानकारी होती है और नए नए वाक्य प्रयोग सीखने को मिलते हैं ।

क्या Hindi Stories वास्तविक  होती हैं?

Hindi Stories अर्थात हिंदी कहानी । जो कही जा सके वो है कहानी । यह जरूरी तो नहीं कि प्रत्येक कहानी बिल्कुल सच हो लेकिन यह जरूर सच है कि प्रत्येक कहानी के पीछे लेखक की कोई न कोई वास्तविक प्रेरणा होती है । हर लेखक अपने अनुभवों के आधार पर ही अपनी कहानी का ताना-बाना बुनता है।

सावन की पूर्णिमा क्या है ?

सावन की पूर्णिमा अर्थात श्रावण पूर्णिमा सनातन समाज का एक बहुत महत्वपूर्ण पर्व है । सामान्य रूप से इसे रक्षाबंधन के नाम से जाना जाता है । लेकिन असल में इसका महत्व सोलह संस्कारों में से एक यज्ञोपवीत से जुडा हुआ है । यज्ञोपवीत धारण करने वाले लोग वर्ष में इसी दिन अपना यज्ञोपवीत साल भर बाद बदलते हैं ।

RELATED POSTS

View all

view all