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बगदाद का अमीर और सौदागार

November 15, 2022 | by storykars

बग़दाद का अमीर और सौदागर

बगदाद में अल फतह नाम का एक अमीर था। वह बहुत बुद्धिमान और नेकदिल था। वह बादशाह का बहुत ही भरोसेमंद सलाहकार था। बादशाह भी बहुत योग्य था और उसके राज्यकाल में कोई भी अपराधी अथवा अन्यायी पनपने न पाता था। दण्ड के भय से सब कोई अपराध करने से घबराते थे।

 

एक दिन जब अल-फतह अपने कमरे में बैठा था तो एक सौदागर ने आकर उसके द्वार को खटखटाया। द्वारपाल ने द्वार खोला और उससे द्वार पर दस्तक देने का कारण पूछा, तो वह सौदागर बोला, “मैं कुछ ऐसी चीजें बेचने आया हूं जो हितकर तथा लाभदायक हैं।”

 

उसकी बात सुनकर द्वारपाल उसे अन्दर ले गया और अल-फतह के सामने हाज़िर किया। सौदागर ने अल-फतह के सामने बड़ी नम्रता से झुककर अभिवादन किया तो अल-फतह ने पूछा, “कहो, तुम्हारे पास बेचने के लिए क्‍या सौगात है?”

 

सौदागर बोला, “बंदापरवर ! मैं ऐसी तीन बातें बेचना चाहता हूं जो तर्क तथा ज्ञान से भरी हैं।”

 

“अच्छा, यह बात है। बताओ, उनका मूल्य क्या लोगे?”

 

“केवल एक हजार दीनारें ।”

 

इस पर अल-फतह बोला, “और यदि वे बातें किसी काम की न हुईं तो क्या मेरा धन व्यर्थ  में जायेगा?”

 

सौदागर ने कहा, “ए अमीर , यदि वे वातें हितकर सिद्ध न हों, तो मैं सारा लिया हुआ धन लौटा दूंगा।”

 

अल-फतह ने कहा, “तो सुनाओ वे बातें। हमें यह सौदा स्वीकार है ।”

 

“ए अमीर ! पहली बात यह कि जो कुछ करो वह बा-अक्ल(बुद्धि से विचारकर) और किये काम के क्या नतीजे होंगे ये बात सोचकर करो।

 

दूसरी बात यह कि मुख्य सड़क या राजमार्ग को त्यागकर छोटे रास्ते या पगडंडी पर न जाओ।

 

तीसरी बात यह कि उस घर में कभी भी रात-भर मेहमान न रहो जहां पति बूढ़ा हो और पत्नी युवती। इन तीन स्वयंसिद्ध बातों पर यदि आप अमल करेंगे तो ये बहुत लाभदायक सिद्ध होंगी ।’

 

अल-फतह को भी ये बातें बहुत शिक्षाप्रद तथा ठीक लगीं। उसने सौदागर को एक हजार दीनारें देकर विदा किया।

 

सौदागर चला गया और अल-फतह उसकी इन तीनों बातों को मन-ही-मन तोलता रहा। सौदागर की पहली बात तो उसे इतनी सुन्दर लगी कि उसने आज्ञा दी कि उसे मोटे-मोटे अक्षरों में लिखकर महल में, सोने के कमरे में तथा घर के हरेक स्थान में लगा दिया जाय।

इतना ही नहीं, उसने अपने प्रयोग में आने वाले हर एक कपड़े, जैसे बिस्तर की चादरों, तकिये के गिलाफों, तौलियों तथा अन्य चीज़ों पर भी यह बोल कढ़वा दिया।

 

अल-फतह की बादशाह को दी गयीं सलाहों के कारण कई सरदार और दुसरे अमीर  उसके दुश्मन हो  गये थे। उन्होंने षड्यंत्र रचा कि जिस तरह भी हो किसी छल-कपट से अल-फतह को मौत के घाट उतार दिया जाय।

उन्होंने काफी धन देकर अल-फतह के हज्जाम को फुसला लिया। उसने यह स्वीकार किया कि जब वह अल-फतह  की हजामत करने जायेगा तो मौका ताड़कर अल-फतह का गला काट देगा।

 

इस षड्यंत्र का मुख्य पात्र बनकर हज्जाम  अल-फतह की हजामत बनाने गया। उसने अल-फतह  की दाढ़ी में पानी लगाया और नर्म करने लगा। दाढ़ी को नर्माते-नर्माते हज्जाम की आंखें उस तौलिए पर जम गई जो उसने अल-फतह के गले में लपेट रखा था- ‘जो कुछ करो, वह अपनी बुद्धि से विचारकर तथा उसका परिणाम सोचकर करो ।’

 

हज्जाम  ने उसे एक बार, दो बार, तीन बार और कई बार पढ़ा। वह पढ़ता गया और मनन करता गया। वह मन-ही-मन सोचने लगा-‘यदि मैंने इसको मार डाला तो उसका परिणाम मेरे लिए विनाशकारी होगा। मुझे भी पकड़कर कुत्ते की मौत मार दिया जायेगा। अतः जो कुछ भी मैं करूंगा उसको सोच-समझकर और परिणाम को ध्यान में लाकर करूंगा।

अपने ख्यालों में डूबा हुआ हज्जाम यह भूल बैठा कि इस वक्त वह कहाँ है और क्या कर रहा है । वह तो परिणाम को सोचकर इतना भयभीत हुआ कि उसके हाथ थर-थर कांपने लगे और उसके हाथ से उस्तरा छूटकर फर्श पर गिर गया।

 

अमीर ने उसकी यह दशा देखी तो पूछा, “क्यों, आज क्या हो गया है तुम्हें? क्या तुम बीमार हो?”

 

अल-फतह  की बात सुनकर हज्जाम  होश में आया और हाथ जोड़कर प्रार्थना की, “सरकार, मुझे क्षमा करें। मैं आज आपका वध करने के लिए आपके शत्रु द्वारा खरीदा गया था। परन्तु तौलिये के अक्षरों ने मुझे चौंका दिया और मेरी यह दशा हो गई। क्षमा करें, सरकार?”

 

अल-फतह  ने मन-ही-मन सोचा कि पहले सिद्धान्त ने आज मेरे प्राणों की रक्षा की है। इसके पश्चात् वह नाई से बोला, “क्षमा तुम्हें इस शर्त पर मिलेगी कि तुम अब सदा के लिए वफ़ादार रहने की प्रतिज्ञा करो।”

 

नाई ने ऐसा वचन देकर अपनी जान छूड़ाई। षड़्यन्त्रकारियों ने जब देखा कि उनका पहला वार खाली गया है, तो उन्होंने एक और षडयंत्र रचा कि जब अल-फतह हलेप शहर की यात्रा को जाय तो वे लोग उस नगर में जाने वाली एक पगडंडी में छिप जायं। उनके आयोजन के अनुसार अल-फ़तेह अवश्य उसी छोटे रास्ते से जायेंगे और वे छिपकर आक्रमण करके उसकी हत्या करेंगे।

 

उनके सोचने के अनुसार अल-फतह भी बकूबाह नगर को जाने के लिए निकले। यह देख उसके शत्रुओं ने भी अपना स्थान ले लिया और उसके आने की प्रतीक्षा में रहे। अल-फ़तेह का काफिला जब उस छोटे मार्ग पर पहुंचा तो काफ़िले के कुछ साथियों ने कहा,  ‘अमीर हुज़ूर ! चलिए, इस छोटे रास्ते से चलें। इस पर जाने से हम जल्दी बकूबाह नगर में पहुंच जायेंगे।”

 

अल=फ़तेह को सौदागर के बताये हुए दूसरे सिद्धान्त की एकदम याद आयी। उसने एक बार मन में दोहराया। सौदागर का दूसरा सिद्धान्त है-‘राज-मार्ग को छोड़कर छोटे रास्ते पर न जाओ। मैं आज इसका पालन करूंगा ।’ यह सोचकर काफ़िले के हमराहियों, सिपाहियों और साथियों से बोला, “मेरे अजीज दोस्तों , मैं शाही-सडक से ही जाऊंगा। बल्कि मैं तो जोर देकर यही कहूँगा कि आप लोग भी छोटे रास्ते पर जाने के बजाय मेरे साथ शाही-सडक पर चले और एक-दुसरे के साथ का लुत्फ़ लें ।”

 

यह सुनकर कई काफिले के कई हमराह तो अल-फ़तेह के साथ ही रहे लेकिन कुछ मौजिये छोटे रास्ते से निकल गये । उन पर सम्राट के शत्रुओं ने आक्रमण किया। रात के समय और चोर की तरह आक्रमण करने से वे सब मारे गये। उधर अल-फ़तेह बिना किसी बाधा के शहर में पहुंचे।

 

रात-भर भी वे सिपाही जब न आए तो उनकी ढूंढ़ हुई। उनके मारे जाने की सूचना जब अमीर के पास पहुंची तो उन्होंने मन-ही-मन सौदागर को धन्यवाद देते हुए कहा-“’दूसरे उसूल ने भी मेरी जान बचाई है। ए परवरदिगार ! ए सातों जहानों के मालिक, तेरा लाख-लाख शुक्रिया !”

 

अपने दूसरे वार को भी खाली जाते देख अल-फ़तेह  के दुश्मन किसी नये मौके की खोज में लगे रहे। एक बार अल-फ़तेह को बादशाह के फरमान से समर्राह जाना पड़ा । उन्होंने सोचा कि इस बार अवश्य इसका वध करेंगे।

 

वे पहले से ही उस शहर में पहुंचे। वहां जिस घर में अल-फ़तेह के रहने का प्रबन्ध किया था उन्होंने उसका पता निकाला। उन्होंने अब की बार अल-फ़तेह  का वध करने का अपनी ओर से पूरा-पूरा प्रबन्ध किया।

 

उन्होंने उस सरायनुमा मकान के मालिक और उसकी जवान बीवी को ढेर सारे सोने और जवाहरातों का लालच दिया और साथ ही साथ हज़ार दीनारों की पेशगी दी।

 

मकान मालिक की बीवी इतनी दौलत के नशे में आ गयी।

 

अल-फ़तेह के दुश्मनों ने जब इस घूस का असर होते हुए देखा तो कहा कि- जब अल-फ़तेह और उसके साथी तुम्हारे मकान में रात को गहरी मीठी नींद सो रहे होंगे, उस वक्त मौका देख तुम्हें उन सब को कत्ल करना होगा।

 

अगर तुम दोनों ऐसा कर सके तो हम तुम्हें इतनी दौलत देंगें कि तुम्हारी सात पुश्तें मज़े से ज़िन्दगी गुजार दें। बस ! काम पक्का होना चाहिए ।

 

जब अल-फ़तेह  उस नगर में पहुंचे और जब उन्हें उस घर में ले जाया गया तो उन्होंने आज्ञा दी कि मेज़बान यानी घर के मालिक को उपस्थित किया जाय। उनकी आज्ञा पर उसे अल-फ़तेह  के सम्मुख हाज़िर किया गया। वह बूढ़ा था। ज्यों ही सम्राट्‌ ने उसे देखा तो बोले, “क्यों भले आदमी ! क्या तुम्हारी पत्नी भी है?”

 

“हां, सरकार!”

 

“क्या आप कृपा करके उन्हें भी मेरे सम्मुख आने की आज्ञा देंगे?”

 

बूढ़े ने अपनी पत्नी को अल-फ़तेह के सामने बुलाया। वह अठारह वर्ष की एक नव-यौवना सुन्दरी थी।

 

एक बूढ़े के संग एक जवान औरत को देखकर अमीर के साथ आये बादशाह के दरबारियों की नज़रें बदल सी गयीं ।

 

अल-फ़तेह ने गौर किया कि वह औरत भी बड़े ही नाज़ो-नखरे से, निगाहों के खंजर चलाती हुयी, अल-फ़तेह और उसके आदमियों से मिली ।

 

यह देख अल-फ़तेह को सौदागर का तीसरा सिद्धान्त याद आ गया। औपचारिक बातचीत करके उन्होंने पति-पत्नी को कहा –“ आपसे मिलकर बहुत अच्छा लगा। अब आप लोग जा सकते हैं, मुझे अपने सरदारों से कुछ सियासी बातचीत करनी है ”

 

 

जब पति-पत्नी चले गए तब अल-फ़तेह अपने आदमियों से बोले, “जरा गौर से सुनो , जल्दी से मेरे रात-भर सोने का प्रबन्ध किसी दूसरे स्थान में करो। मैं अब यहां एक क्षण भी नहीं रहूंगा। बल्कि मैं तुम सब से भी यही कहूँगा कि बजाय यहाँ के, किसी भी और ठिकाने पर रात गुजारने का इंतजाम करो”

 

 

अल-फ़तेह की यह सलाह उसके साथ आये दरबारियों और कई लोगों को कुछ खास पसंद नहीं आयी।

 

खिदमतगारों ने भी उत्तर दिया, “पर इन्होंने तो आपकी खातिर का सब इंतजाम बेहतरीन तरीके से किया है। हुज़ूर-ए-आला ! क्योंकि नगर भर में और कोई मकान ऐसा नहीं, यदि क्षमा प्रदान हो तो रात-भर यहीं रहा जाय ।”

 

इस पर अल-फ़तेह ने जोर देकर कहा, “नहीं, मैंने जो इरादा किया है वह बदल नहीं सकता । मैं इस मकान के बदले किसी झोपड़ी में रहना पसन्द करूंगा। जाओ, प्रबन्ध करो!”

 

नौकरों ने जल्दी में एक और छोटे से मकान में उनके रहने का प्रबन्ध किया । जब वह उस दूसरे मकान में जाने लगे तो दरबारियों ने उधर न जाने की इच्छा प्रकट की। अल-फ़तेह ने उन्हें वहीं रहने की स्वीकृति देते हुए कहा, “अच्छा, कल अल-सुबह मेरे पास आ जाना।”

 

अल-फ़तेह चुपके से दूसरे मकान में चले गये। रात के अंधेरे में बूढ़ा और उसकी बीवी आये और एक-एक करके उन्होंने दरबारियों को मार डाला। दूसरे दिन सुबह जब उनके मारे जाने की सूचना सम्राट्‌ को मिली तो उसने भगवान को धन्यवाद देते हुए कहा-“हे दयालु ईश्वर! यदि मैं भी उसी घर में रहता तो मेरी मौत हो जाती। सौदागर का तीसरा सिद्धान्त भी सत्य सिद्ध हुआ ।”

 

बादशाह के दरबार के कई आदमियों के एक साथ हुए कत्लेआम ने बगदाद में हलचल मचा दी ।

 

गहरी तफ्तीश हुयी और इस पूरी साजिश को अंजाम देने वाले अल-फ़तेह के दुश्मनों के साथ-साथ बूढ़े और उसकी बीवी को को बादशाह के हुक्म  से कत्ल कर दिया गया। अल-फ़तेह ने इसके पश्चात्‌ सदा इन तीनों उसूलों को अपने जीवन में उतार लिया।

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