

प्रेमचंद संक्षिप्त परिचय
कथासम्राट प्रेमचंद, निर्विवादित रूप से एक ऐसे साहित्यकार रहे हैं जिनकी लेखनी ने हिंदी साहित्य को बहुत सम्मान दिलवाया। इसका कारण उनकी लेखनी का प्रवाह और सहजता है। भाषा बिल्कुल सरल और जमीन से जुडी हुयी। प्रेमचंद जी ने अपने साहित्य में जो विषय उठाए वे भी बिल्कुल उनके समकालिक समाज का दर्पण से थे।
वो समाज जो भारी सामाजिक और राजनैतिक उथल-पुथल के दौर से गुजर रहा था। भारत स्वतंत्र नहीं था। ब्रिटिश ताज के अधीन था । एक तरफ तो समाज अपनी तमाम कमजोरियों के कारण अशक्त था और दूसरी ओर अंग्रेज समाज में व्याप्त हर कमजोरी का भरपूर लाभ लेने की फिराक में आये दिन राजनैतिक बाजी बिछाते थे।
प्रेस स्वतंत्र नहीं थी। लिखने की आज़ादी भी तब तक ही थी जब तक सत्ताधीशों को कोई बात अपने विरुद्ध जाती न प्रतीत होती ।
ऐसे में प्रेमचंद का साहित्याकाश में पदार्पण होता है । सात साल की आयु में नियति के क्रूर हाथों द्वारा पहले माता और सोलह वर्ष की कच्ची उम्र तक पिता को भी खो देने वाले संवेदनशील प्रेमचंद का जीवन ही अपने आप में किसी कहानी जैसा है ।
पहली माता के स्वर्गवास के बाद सौतेली माता का जीवन में आगमन और फिर लगभग एक अनाथ जैसी मानसिक स्थिति में बचपन का काटना जिसका कि प्रेमचंद ने बाद में अपनी कहानियों में भी वर्णन किया।इच्छा के विरुद्ध पिता द्वारा अपने से उम्र में बड़ी स्त्री से विवाह जो कि एक असफल विवाह सिद्ध होता है।
पढाई जारी रखने की ललक, सोलह वर्ष की आयु में पिता की मृत्यु के बाद विमाता, पत्नी और परिवार की जिम्मेदारी और आजीविका का दबाव। मतलब जीवन में दुश्वारियों की कोई कमी नहीं।
और शायद जीवन की इन्हीं कठिनाइयों के बीच किताबें उनका सहारा बनीं। बल्कि किताबे तो बचपन से ही उनकी दोस्त बन गयीं थीं । उन दिनों सामान्य रूप से फारसी में ही पढाई होती थी सो धनपतराय ने भी शुरूआती शिक्षा फारसी में ही प्राप्त की । किताबें पढने में भरपूर रूचि के चलते देशीय साहित्य के साथ साथ विश्व साहित्य का भी खूब अध्ययन कर लिया। और वह अध्ययन किसी मजबूरी या दवाब में नहीं बल्कि स्वयं अपनी रूचि से और मनोरंजन के लिए।
शिक्षा के नाम पर मैट्रिक-1898 में, इण्टर- 1910 में अंग्रेज़ी, दर्शन, फ़ारसी और इतिहास लेकर, और बी. ए.-1919 में अंग्रेजी, फ़ारसी और इतिहास लेकर पूरा किया और तुरंत ही सरकारी नौकरी भी पा गए। शिक्षा विभाग में इंस्पेक्टर । ठीक-ठाक नौकरी थी, फिर यह भी सोचिये कि उस ज़माने में कितने ही लोगों की नौकरी स्नातक करते ही लग जाती होगी ?
नौकरी कुल जमा दो साल की। 1919 से 1921 तक। महात्मा गाँधी के असहयोग आन्दोलन में, गाँधी जी आह्वान पर अपनी नौकरी की आहुति आन्दोलन रुपी यज्ञ में दे दी । मन में देश के लिए प्रेम भी था और अंग्रेजों के लिए अनमनापन भी । आखिर इस मामले से पहले अपनी लेखनी की बदौलत वे अंग्रेज बहादुर की नजर में चढ़ चुके थे (सोजे-वतन वाला प्रकरण), तो रफ़्तार-ए-ज़माना में लिखते हुए वे आजीविका के संकट को हल करने की कोशिश करने लगे।
लेकिन आर्थिक तंगी का दौर शुरू हो चुका था। जो फिर चलता ही रहा ।
लेकिन प्रेमचन्द लिखते रहे। अपने लगभग 56 वर्ष के जीवन में लगभग 18 से ज्यादा उपन्यास लिखे जिनमें सेवासदन, निर्मला, कर्मभूमि, गोदान, गबन, प्रतिज्ञा, रंगभूमि उल्लेखनीय हैं। ‘मंगल सूत्र’ उनका अन्तिम उपन्यास था, जिसे वे पूरा नहीं कर पाए। इस उपन्यास को उनके पुत्र अमृत राय ने पूरा किया।
300 से अधिक कहानियों जिनमें ‘कफन’ , ‘शतरंज के खिलाड़ी’ , ‘पूस की रात’ , ‘ईदगाह’ , ‘बड़े घर की बेटी’ , ‘पंच परमेश्वर’ इत्यादि उल्लेखनीय हैं। उनकी कहानियों का संग्रह ‘मानसरोवर’ नाम से आठ भागों में प्रकाशित है।
इसके अतिरिक्त प्रेमचंद के निबन्धों का संग्रह ‘प्रेमचन्द के श्रेष्ठ निबन्ध’ नामक पुस्तक के रूप में प्रकाशित है। लोकप्रिय निबंधों में पुराना जमाना नया जमाना, स्वराज के फायदे, कहानी कला (1,2,3), कौमी भाषा के विषय में कुछ विचार, हिन्दी-उर्दू की एकता इत्यादि यादगार हैं।
प्रेमचंद के नाटकों में ‘संग्राम’ , ‘कर्बला’ , ‘रूठी रानी तथा ‘प्रेम की वेदी’ प्रमुख हैं।
प्रेमचंद ने बाल-साहित्य यथा – रामकथा, कुत्ते की कहानी इत्यादि लिखा । कथेतर- साहित्य भी लिखा ।
विश्व की लोकप्रिय रचनाओं के अनुवाद किया जिनमें टॉलस्टॉय की कहानियाँ’ , ‘सृष्टि का प्रारम्भ’ , ‘आज़ाद कथा (रतननाथ सरशार के उर्दू उपन्यास फसान-ए-आजाद का हिन्दी अनुवाद) ‘ , ‘अहंकार’ , ‘हड़ताल’ तथा ‘चाँदी की डिबिया’ गाल्सवर्दी के तीन नाटकों का हड़ताल और न्याय उल्लेखनीय हैं , हिंदी साहित्य को समर्पित किये ।
जन्म-31 जुलाई 1880
मृत्यु – 8 अक्टूबर 1936
जन्मस्थान – वाराणसी जिले (उत्तर प्रदेश) के लमही गाँव
माता-आनन्दी देवी
पत्नी – शिवरानी देवी (1906 में विवाह)
संतान – श्रीपतराय , अमृतराय , कमला देवी श्रीवास्तव
पिता-मुंशी अजायबराय श्रीवास्तव (पेशा -लमही में ही डाकमुंशी)
वास्तविक नाम- धनपत राय श्रीवास्तव।
अन्य नाम– नवाब राय (उर्दू लेखन में),
प्रेमचंद की शिक्षा – आरम्भिक शिक्षा- फ़ारसी में, मैट्रिक(1898 में), इण्टर(1910 में अंग्रेज़ी, दर्शन, फ़ारसी और इतिहास लेकर),
बी. ए.( 1919 में अंग्रेजी, फ़ारसी और इतिहास लेकर)
प्रेमचंद की नौकरी / व्यवसाय – शिक्षा विभाग के इंस्पेक्टर (1919-1921), लेखन,संपादन
संपादन – पत्रिकाएँ – मर्यादा, माधुरी , पत्र- हंस , जागरण
प्रथम उपलब्ध लेखन – एक उर्दू उपन्यास ‘असरारे मआबिद
दूसरा उपन्यास– ‘हमखुर्मा व हमसवाब’ (हिंदी रूपांतरण “प्रेमा” नाम से 1907 में प्रकाशित )
पहला कहानी संग्रह– सोज़े-वतन (1908 में प्रकाशित)
प्रेमचंद नाम से प्रथम रचना – “बड़े घर की बेटी” (1910 में जमाना पत्रिका में प्रकाशित)
प्रेमचंद का पहला हिंदी उपन्यास– सेवासदन (प्रकाशित -1918)
प्रेमचंद का साहित्य – लगभग 300 से अधिक कहानियाँ तथा 18 से अधिक उपन्यास
प्रेमचंद से सम्बंधित तथ्य (Facts about Premchand )
- प्रेमचंद ने समाज को ही केंद्र में रखकर लिखा। उन्होंने 1906 से 1936 के बीच के समाजसुधार आन्दोलनों, स्वाधीनता संग्राम तथा प्रगतिवादी आन्दोलनों के सामाजिक प्रभावों का स्पष्ट चित्रण किया। यही कारण है कि हिन्दी कहानी तथा उपन्यास के क्षेत्र में 1918 से 1936 तक के कालखण्ड को ‘प्रेमचंद युग’ या ‘प्रेमचन्द युग’ कहा जाता है।
- जब प्रेमचंद सात साल के थे, तभी उनकी माता का स्वर्गवास हो गया। जब पन्द्रह वर्ष के हुए तब उनका विवाह कर दिया गया और सोलह वर्ष के होने पर उनके पिता का भी देहान्त हो गया था।
- शिवरानी देवी से 1906 में उनका दूसरा विवाह हुआ था। जब पहला विवाह हुआ था तब प्रेमचंद मात्र पंद्रह वर्ष के थे ।
- प्रेमचंद के पहले कहानी संग्रह सोजे-वतन इतना राष्ट्रभक्ति प्रेरित संकलन था कि उसको अंग्रेज़ सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया और इसकी सभी प्रतियाँ जब्त कर लीं और इसके लेखक नवाब राय को भविष्य में लेखन न करने की चेतावनी दी।
- सोजे-वतन पर प्रतिबन्ध के ही कारण उन्हें नाम बदलकर प्रेमचंद के नाम से लिखना पड़ा।
- सोजे-वतन संग्रह की पहली कहानी दुनिया का सबसे अनमोल रतन को आम तौर पर उनकी पहली प्रकाशित कहानी माना जाता रहा है।
- जबकि डॉ॰ गोयनका के अनुसार कानपुर से निकलने वाली उर्दू मासिक पत्रिका ज़माना के अप्रैल अंक में प्रकाशित सांसारिक प्रेम और देश-प्रेम (इश्के दुनिया और हुब्बे वतन) वास्तव में उनकी पहली प्रकाशित कहानी है।
- प्रेमचंद का असली नाम धनपत राय श्रीवास्तव था लेकिन ब्रिटिश सरकार द्वारा उनके छद्मनाम नवाबराय पर प्रतिबन्ध लगाने के बाद उनका नाम “प्रेमचंद” दयानारायन निगम ने रखा था।
- प्रेमचंद ने प्रवासीलाल के साथ मिलकर सरस्वती प्रेस भी खरीदा तथा हंस और जागरण निकाला। लेकिन प्रेस उनके लिए व्यावसायिक रूप से लाभप्रद सिद्ध नहीं हुआ और इसमें उन्हें भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा ।
- प्रेमचंद का हल्का सा जुडाव हिंदी सिनेमा से भी रहा। उन्होंने मोहन दयाराम भवनानी की अजंता सिनेटोन कंपनी में कथा-लेखक की नौकरी भी की। १९३४ में प्रदर्शित फिल्म मजदूर की कहानी उन्होंने ही लिखी थी। बाद में उनकी रचनाओं पर आधारित कई फ़िल्में जैसे शतरंज के खिलाडी, सद्गति, ओका उरी कथा इत्यादि बनीं व् धारावाहिकों का भी निर्माण हुआ।
- गोदान का अंग्रेजी अनुवाद ‘द गिफ्ट ऑफ़ काओ’ नाम से प्रकाशित हुआ।
- प्रेमचंद का नाम हम आमतौर पर मुंशी प्रेमचंद कई स्थानों पर लिखा हुआ पाते हैं जो कि एक गलत परंपरा है। किसी पत्र में कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी व् प्रेमचंद का नाम पास पास कुछ इस तरीके से लिखा हुआ देखा गया कि कन्हैयालाल मुंशी जी के नाम का मुंशी, प्रेमचंद जी के नाम के आगे लगा हुआ मान लिया गया।
- प्रेमचंद के नाम के आगे मुंशी लगाने की प्रथा को गलत बताते हुए उनके पुत्र अमृतराय जी ने इसका पुरजोर विरोध किया है।
- प्रेमचंद की स्मृति में भारतीय डाकतार विभाग की ओर से ३० जुलाई १९८० को उनकी जन्मशती के अवसर पर ३० पैसे मूल्य का एक डाक टिकट जारी किया गया।
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